Friday, March 10, 2023

नज़्म | देख बहारें होली की | नज़ीर अकबराबादी | Najm | Dekh Baharein Holi Ki | Nazeer Akbarabadi


नज़्म - देख बहारें होली की

जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की 
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की 
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की 
ख़ुम, शीशे, जाम, झलकते हों तब देख बहारें होली की 
महबूब नशे में छकते हों तब देख बहारें होली की 


हो नाच रंगीली परियों का बैठे हों गुल-रू रंग-भरे 
कुछ भीगी तानें होली की कुछ नाज़-ओ-अदा के ढंग-भरे 
दिल भूले देख बहारों को और कानों में आहंग भरे 
कुछ तबले खड़कें रंग-भरे कुछ ऐश के दम मुँह-चंग भरे 
कुछ घुंघरू ताल छनकते हों तब देख बहारें होली की 


सामान जहाँ तक होता है उस इशरत के मतलूबों का 
वो सब सामान मुहय्या हो और बाग़ खिला हो ख़्वाबों का 
हर आन शराबें ढलती हों और ठठ हो रंग के डूबों का 
इस ऐश मज़े के आलम में एक ग़ोल खड़ा महबूबों का 
कपड़ों पर रंग छिड़कते हों तब देख बहारें होली की 


गुलज़ार खिले हों परियों के और मज्लिस की तय्यारी हो 
कपड़ों पर रंग के छींटों से ख़ुश-रंग अजब गुल-कारी हो 
मुँह लाल, गुलाबी आँखें हों, और हाथों में पिचकारी हो 
उस रंग-भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो 
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की 


उस रंग-रंगीली मज्लिस में वो रंडी नाचने वाली हो 
मुँह जिस का चाँद का टुकड़ा हो और आँख भी मय के प्याली हो 
बद-मसत बड़ी मतवाली हो हर आन बजाती ताली हो 
मय-नोशी हो बेहोशी हो ''भड़वे'' की मुँह में गाली हो 
भड़वे भी, भड़वा बकते हों तब देख बहारें होली की 


और एक तरफ़ दिल लेने को महबूब भवय्यों के लड़के 
हर आन घड़ी गत भरते हों कुछ घट घट के कुछ बढ़ बढ़ के 
कुछ नाज़ जतावें लड़ लड़ के कुछ होली गावें अड़ अड़ के 
कुछ लचके शोख़ कमर पतली कुछ हाथ चले कुछ तन भड़के 
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों तब देख बहारें होली की 


ये धूम मची हो होली की और ऐश मज़े का झक्कड़ हो 
उस खींचा-खींच घसीटी पर भड़वे रंडी का फक्कड़ हो 
माजून, शराबें, नाच, मज़ा, और टिकिया सुल्फ़ा कक्कड़ हो 
लड़-भिड़ के 'नज़ीर' भी निकला हो, कीचड़ में लत्थड़-पत्थड़ हो 
जब ऐसे ऐश महकते हों तब देख बहारें होली की 

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