Wednesday, August 30, 2023

Hindi Quiz | गोदान


👉 ‘गोदान’ मुंशी प्रेमचन्द का एक प्रसिद्ध उपन्यास है। आज के Quiz में इसी उपन्यास से संबंधित प्रश्नों को शामिल किया गया है। 📖✍️


1➤ गोदान के संदर्भ में कथन है : 1. इसका प्रकाशन 1936 ई. में हुआ था। 2. इसे कृषक जीवन का महाकाव्य कहा जाता है। सही कूट का चयन करें :






2➤ गोदान की विषय वस्तु है






3➤ गोदान का नायक है






4➤ होरी किस प्रान्त का रहने वाला है ?






5➤ प्रेमचन्द ने किन दो गांवों को गोदान की कथावस्तु बनाया है ?






6➤ होरी किस गांव का रहने वाला है ?






7➤ गोदान उपन्यास के जमींदार रायसाहब का पूरा नाम है ?






8➤ रायसाहब किस गांव से थे ?






9➤ “जब दूसरे के पांवों तले अपनी गर्दन दबी हुई हो तो उन पावों को सहलाने में ही कुशल है।” यह कथन कौन किससे कहता है ?






10➤ बेलारी और सेमरी गांवों के बीच की दूरी है :






11➤ रायसाहब के संदर्भ में कथन है : 1. सत्याग्रह संग्राम में जेल गए थे। 2. राष्ट्रवादी थे। 3. साहित्य और संगीत प्रेमी थे। 4. लेखक और निशानेबाज थे। सही कूट है :






12➤ होरी ने रामलीला में किस अभिनय को निभाया था ?






13➤ राय साहब ने होरी से कितने रूपयों का प्रबंध करने को कहा था ?






14➤ होरी को किसने अपनी गाय दी थी ?






15➤ गोदान में उल्लेखित ‘बिजली’ किस प्रकार का पत्र था ?






16➤ ‘बिजली’ के संपादक का नाम था ?






17➤ गोदान में वकील नामक पात्र का वास्तविक नाम है ?






18➤ मिस्टर मेहता किस विषय के प्रोफेसर थे ?






19➤ गोदान के किस पात्र में प्रेमचन्द की झलक दिखती है ?






20➤ मालती पेशे से किस पद पर थीं ?






21➤ मेहता को किस संगठन की ओर से भाषण देना था ?






22➤ मिस्टर खन्ना का पूरा नाम था ?






23➤ निम्नलिखित में सुमेलित नहीं है ?






24➤ “संपत्ति और सहृदयता में बैर है। हम भी दान देते हैं, धर्म करते हैं। लेकिन जानते हो, क्यों ? केवल अपने बराबर वालों को नीचा दिखाने के लिए। हमारा दान और धर्म कोरा अहंकार है , विशुद्ध अहंकार।” कथन है ?






25➤ “हमारी गर्दन दूसरों के पैरों के नीचे दबी हुई है, अकड़कर निबाह नहीं हो सकता।” ?






26➤ “भिक्षुक जब तक दस द्वारे न जाए उसका पेट कैसे भरेगा ? मैं ऐसे भिक्षुकों को मुंह नहीं लगाती । ऐसे तो गली-गली मिलते हैं। फिर भिक्षुक देता क्या है, असीस, असीसों से तो किसी का पेट नहीं भरता ।” कथन है ?






27➤ होरी के पास कितनी जमीन थी ?






28➤ मालती की बहने हैं ?






29➤ गोबर घर से भागकर किस शहर गया था ?






30➤ शहर में गोबर को कौन सा काम मिला था ?






31➤ निम्नलिखित में से किस स्त्री पात्र को कविता लिखने का शौक था ?






32➤ गोदान के किस प्रसंग को आलोचकों ने दलित विमर्श से जोड़ा है ?






33➤ होरी की मृत्यू लू लगने से हुई थी उस समय उसके पास मौजूद थे ?






Wednesday, August 23, 2023

Hindi Notes | हिन्दी के प्रमुख कवि और उनके समकालीन शासक

 


हिन्दी के प्रमुख कवि और उनके समकालीन शासक

कई परीक्षाओं में हिन्दी साहित्य से संबंधित इस तरह के प्रश्न पूंछे जाते हैं कि इस कवि के समकालीन कौन सा शासक था ? या इस शासक के समकालीन कौन सा कवि था ? इन प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए मैंने एक सूची तैयार की है जिसमें हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि और उनके समकालीन शासकों को रखा  है। इनका समय आदिकाल से लेकर रीतिकाल तक है। 


क्र.स. कवि समकालीन शासक
1 चंदबरदाई पृथ्वीराज चौहान
2 विद्यापति कीर्ति सिंह , शिव सिंह
3 अमीर खुसरो बलवन , अलाउद्दीन खिलजी
4 रामानंद सिकंदर लोदी
5 कबीर सिकंदर लोदी
6 रैदास सिकंदर लोदी
7 बल्लभाचार्य सिकंदर लोदी
8 गुरू नानक देव बाबर
9 जायसी शेरशाह
10 नूर मुहम्मद मुहम्मद शाह
11 सूरदास अकबर
12 कुम्भनदास अकबर
13 रहीम अकबर
14 तुलसीदास अकबर
15 गंग अकबर , नूरजहां
16 केशवदास इंद्रजीत , जहांगीर
17 भूषण शिवाजी , छत्रसाल
18 मतिराम जहांगीर , भाव सिंह , भोगनाथ , ज्ञानचन्द्र , स्वरूप सिंह बुंदेला
19 घनानंद मुहम्मदशाह रंगीला
20 बोधा पन्ना नरेश खेत सिंह
21 पद्माकर प्रताप सिंह
22 बिहारी लाल जय सिंह
23 पुहकर जहांगीर
24 सुंदरदास शाहजहां
25 कुलपति मिश्र शाहजहां
26 चिंतामणि शाहजहां
27 जगन्नाथ शाहजहां
28 वृन्द औरंगजेब
29 आलम मुअज़्ज़म

Friday, August 18, 2023

Hindi Notes | हिन्दी साहित्य में गुरू शिष्य परंपरा


 हिन्दी साहित्य में गुरू शिष्य परंपरा

हिन्दी साहित्य में गुरू और शिष्य के रूप में कई ऐसे साहित्यकार देखने को मिलते हैं, जिन्होंने साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया। उनके इसी योगदान ने उनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज कर दिया। निम्न सूची में इन्हीं नामों को प्रकाशित किया गया है। जो ज्ञानवर्धक  होने के साथ-साथ परीक्षापयोगी भी हैं।

क्र.स. गुरू शिष्य
1 सरहपा शबरपा
2 शबरपा लुइपा
3 लुइपा डेंगीपा
4 डोम्भिपा विरूपा
5 जलंधरपा कण्हपा
6 कबीरदास धर्मदास
7 अनंतानंद कृष्णदास पयहारी
8 कृष्णदास पयहारी अग्रदास और कील्हदास
9 अग्रदास नाभादास
10 कील्हदास द्वारकादास
11 जलंधर मत्स्येन्द्रनाथ
12 मत्स्येन्द्रनाथ गोरखनाथ
13 गोरखनाथ चर्पटनाथ , चौरंगीलाल
14 हरि मिश्र विद्यापति
15 विसोवा खेचर नामदेव
16 दादू सुन्दरदास , रज्जब
17 रैदास मीरा
18 रामानंद कबीर , सुरसुरी , पद्मावती
19 राघवानंद रामानंद
20 शेखतकी कबीर
21 भट्टतौल अभिनवगुप्त
22 शेख बुरहान कुतुबन
23 निजामुद्दीन औलिया अमीर खुसरो
24 शेख मोहिनी जायसी
25 संत गौस मंझन
26 हाजी बाबा उस्मान
27 नरहरिदास तुलसीदास
28 हीरामणि दीक्षित सेनापति
29 यादव प्रकाश रामानुजाचार्य
30 विष्णु स्वामी बल्लभाचार्य
31 बल्लभाचार्य कुम्भनदास , सूरदास , परमानंददास , कृष्णदास
32 विट्टलनाथ रसखान , गोविंदस्वामी , नंददास , चतुर्भुजदास , छीतस्वामी
33 नरहरिदास बिहारी
34 राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
35 महावीर प्रसाद द्विवेदी मैथिलीशरण गुप्त
36 हजारी प्रसाद द्विवेदी नामवर सिंह

Monday, August 14, 2023

कहानी | ध्रुवनिवासी रीछ का शिकार | लियो टॉल्सटॉय | Kahani | Dhruv Niwasi Reech Ka Shikar | Leo Tolstoy


कहानी - ध्रुवनिवासी रीछ का शिकार

हम एक दिन रीछ के शिकार को निकले। मेरे साथी ने एक रीछ पर गोली चलाई। वह गहरी नहीं लगी। रीछ भाग गया। बर्फ पर लहू के चिह्न बाकी रह गए।
हम एकत्र होकर यह विचार करने लगे कि तुरंत पीछा करना चाहिए या दो-तीन दिन ठहर कर उसके पीछे जाना चाहिए। किसानों से पूछने पर एक बूढ़ा बोला- तुरंत पीछा करना ठीक नहीं, रीछ को टिक जाने दो। पाँच दिन पीछे शायद वह मिल जाए। अभी पीछा करने पर तो वह डरकर भाग जाएगा।
इस पर एक दूसरा जवान बोला- नहीं-नहीं, हम आज ही रीछ को मार सकते हैं। वह बहुत मोटा है, दूर नहीं जा सकता। सूर्य अस्त होने से पहले कहीं न कहीं टिक जाएगा, नहीं तो मैं बर्फ पर चलने वाले जूते पहनकर ढूँढ़ निकालूँगा।
मेरा साथी तुरंत रीछ का पीछा करना नहीं चाहता था, पर मैंने कहा- झगड़ा करने से क्या मतलब। आप सब गाँव को जाइए। मैं और दुर्गा (मेरे सेवक का नाम) रीछ का पीछा करते हैं। मिल गया तो वाह वाह! दिन भर और करना ही क्या है?
और सब तो गाँव को चले गए, मैं और दुर्गा जंगल में रह गए। अब हम बंदूकें संभाल कर, कमर कसके, रीछ के पीछे हो लिए।
रीछ का निशान दूर से दिखाई पड़ता था। प्रतीत होता था कि भागते समय कभी तो वह पेट तक बर्फ में धंस गया है और कभी बर्फ चीर कर निकला है। पहले-पहले तो हम उसकी खोज के पीछे बड़े-बड़े वृक्षों के नीचे चलते रहे, परंतु घना जंगल आ जाने पर दुर्गा बोला- अब यह राह छोड़ देनी चाहिए, वह यहीं कहीं बैठ गया है। धीरे-धीरे चलो, ऐसा न हो कि डर कर भाग जाए।
हम राह छोड़कर बाईं ओर लौट पड़े। पाँच सौ कदम जाने पर सामने वही चिह्न फिर दिखाई दिए। उसके पीछे चलते-चलते एक सड़क पर जा निकले। चिह्नों से जान पड़ता था कि रीछ गाँव की ओर गया है।
दुर्गा- महाराज, सड़क पर खोज लगाने से अब कोई लाभ नहीं। वह गाँव की ओर नहीं गया। आगे चलकर चिह्नों से पता लग जाएगा कि वह किस ओर गया है।
एक मील आगे जाने पर चिह्नों से ऐसा प्रतीत होता था कि रीछ सड़क से जंगल की ओर नहीं, जंगल से सड़क की ओर आया है। उसकी उंगलियाँ सड़क की तरफ थीं। मैंने पूछा कि दुर्गा, क्या यह कोई दूसरा रीछ है?
दुर्गा- नहीं, यह वही रीछ है, उसने धोखा दिया है। आगे चलकर दुर्गा का कहना सत्य निकला, क्योंकि रीछ दस कदम सड़क की ओर आकर फिर जंगल की ओर लौट गया था।
दुर्गा- अब हम उसे अवश्य मार डालेंगे। आगे दलदल है, वह वहीं जाकर बैठ गया है, चलिए।
हम दोनों आगे बढ़े। कभी तो मैं किसी झाड़ी में फँस जाता था, बर्फ पर चलने का अभ्यास न होने के कारण कभी जूता पैर से निकल जाता था। पसीने से भीग कर मैंने कोट कंधे पर डाल लिया, लेकिन दुर्गा बड़ी फुर्ती से चला जा रहा था। दो मील चलकर हम झील के उस पार पहुँच गए।
दुर्गा- देखो, सुनसान झाड़ी पर चिड़ियाँ बोल रही हैं, रीछ वहीं है। चिड़ियाँ रीछ की महक पा गई हैं।
हम वहाँ से हटकर आधा मील चले होंगे कि फिर रीछ का खुर दिखाई दिया। मुझे इतना पसीना आ गया कि मैंने साफा भी उतार दिया। दुर्गा को भी पसीना आ गया था।
दुर्गा- स्वामी, बहुत दौड़-धूप की, अब जरा विश्राम कर लीजिए।
संध्या हो चली थी। हम जूते उतार कर धरती पर बैठ गए और भोजन करने लगे। भूख के मारे रोटी ऐसी अच्छी लगी कि मैं कुछ कह नहीं सकता। मैंने दुर्गा से पूछा कि गाँव और कितनी दूर है?
दुर्गा- कोई आठ मील होगा, हम आज ही वहाँ पहुँच जाएँगे। आप कोट पहन लें, ऐसा न हो सर्दी लग जाए।
दुर्गा ने बर्फ ठीक करके उस पर कुछ झाड़ियाँ बिछाकर मेरे लिए बिछौना तैयार कर दिया। मैं ऐसा बेसुध सोया कि इसका ध्यान ही न रहा कि मैं कहाँ हूँ। जागकर देखता हूँ कि एक बड़ा भारी दीवानखाना बना हुआ है, उसमें बहुत से उजले चमकते हुए खंभे लगे हुए है, उसकी छत तवे की तरह काली है, उसमें रंगदार अनंत दीपक जगमगा रहे हैं। मैं चकित हो गया। परंतु तुरंत मुझे याद आई कि यह तो जंगल है, यहाँ दीवानखाना कहाँ? असल में श्वेत खंभे तो बर्फ से ढँके हुए वृक्ष थे, रंगदार दीपक उनकी पत्तियों में से चमकते हुए तारे थे।
बर्फ गिर रही थी, जंगल में सन्नाटा था। अचानक हमें किसी जानवर के दौड़ने की आहट मिली। हम समझे कि रीछ है, परंतु पास जाने पर मालूम हुआ कि जंगली खरहा है। हम गाँव की ओर चल दिए। बर्फ ने सारा जंगल श्वेत बना रखा था। वृक्षों की शाखाओं में से तारे चमकते और हमारा पीछा करते ऐसे दिखाई देते थे कि मानो सारा आकाश चलायमान हो रहा है।
जब हम गाँव पहुँचे तो मेरा साथी सो गया था। मैंने उसे जगाकर सारा वृत्तांत कह सुनाया और जमींदार से अगले दिन के लिए शिकारी एकत्र करने को कहा और कहकर भोजन करके सो रहा। मैं इतना थक गया था कि यदि मेरा साथी मुझे न जगाता, तो मैं दोपहर तक सोया पड़ा रहता। जागकर मैंने देखा कि साथी वस्त्र पहने तैयार है और अपनी बंदूक ठीक कर रहा है।
मैं- दुर्गा कहाँ है?
साथी- उसे गए देर हुई। वह कल के निशान पर शिकारियों को इकट्ठा करने गया है।
हम गाँव के बाहर निकले। धुंध के मारे सूर्य दिखाई न पड़ता था! दो मील चलकर धुआं दिखाई पड़ा। समीप जाकर देखा कि शिकारी आलू भून रहे हैं और आपस में बातें करते जाते हैं। दुर्गा भी वहीं था। हमारे पहुंचने पर वे सब उठ खड़े हुए। रीछ को घेरने के लिए दुर्गा उन सबको लेकर जंगल की ओर चल दिया। हम भी उनके पीछे हो लिए। आधा मील चलने पर दुर्गा ने कहा कि अब कहीं बैठ जाना उचित है। मेरे बाईं ओर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष थे। सामने मनुष्य के बराबर ऊँची बर्फ से ढँकी हुई घनी झाड़ियाँ थीं, इनके बीच से होकर एक पगडंडी सीधी वहाँ पहुँचती थी, जहाँ मैं खड़ा हुआ था। दाईं ओर साफ मैदान था। वहाँ मेरा साथी बैठ गया।
मैंने अपनी दोनों बंदूकों को भली भाँति देखकर विचारा कि कहाँ खड़ा होना चाहिए। तीन कदम पीछे हटकर एक ऊँचा वृक्ष था। मैंने एक बंदूक भरकर तो उसके सहारे खड़ी कर दी, दूसरी घोड़ा चड़ाकर हाथ में ले ली। म्यान से तलवार निकाल कर देख ही रहा था कि अचानक जंगल में से दुर्गा का शब्द सुनाई दिया- “वह उठा, वह उठा!“ इस पर सब शिकारी बोल उठे, सारा जंगल गूँज पड़ा। मैं घात में था कि रीछ दिखाई पड़ा और मैंने तुरंत गोली छोड़ी।
अकस्मात बाईं ओर बर्फ पर कोई काली चीज दिखाई दी। मैंने गोली छोड़ी, परंतु खाली गई और रीछ भाग गया।
मुझे बड़ा शोक हुआ कि अब रीछ इधर नहीं आएगा। शायद साथी के हाथ लग जाए। मैंने फिर बंदूक भर ली, इतने में एक शिकारी ने शोर मचाया- “यह है, यह है यहाँ आओ!“
मैंने देखा कि दुर्गा भाग कर मेरे साथी के पास आया और रीछ को उंगली से दिखाने लगा। साथी ने निशाना लगाया। मैंने समझा, उसने मारा, परंतु वह गोली भी खाली गई, क्योंकि यदि रीछ गिर जाता तो साथी अवश्य उसके पीछे दौड़ता। वह दौड़ा नहीं, इससे मैंने जाना कि रीछ मरा नहीं।
क्या आपत्ति आई, देखता हूँ कि रीछ डरा हुआ अंधाधुंध भागा मेरी ओर आ रहा है। मैंने गोली मारी, परंतु खाली गई। दूसरी छोड़ी, वह लगी तो सही, परंतु रीछ गिरा नहीं। मैं दूसरी बंदूक उठाना ही चाहता था कि उसने झपट कर मुझे दबा लिया और लगा मेरा मुँह नोंचने। जो कष्ट मुझे उस समय हो रहा था, मैं उसे वर्णन नहीं कर सकता। ऐसा प्रतीत होता था मानो कोई छुरियों से मेरा मुँह छील रहा है।
इतने में दुर्गा और साथी रीछ को मेरे ऊपर बैठा देख कर मेरी सहायता को दौड़े। रीछ उन्हें देख, डरकर भाग गया। सारांश यह कि मैं घायल हो गया, पर रीछ हाथ न आया और हमें खाली हाथ गाँव लौटना पड़ा।
एक मास पीछे हम फिर उस रीछ को मारने के लिए गए, मैं फिर भी उसे न मार सका उसे दुर्गा ने मारा, वह बड़ा भारी रीछ था। उसकी खाल अब तक मेरे कमरे में बिछी हुई है।

Saturday, August 12, 2023

Hindi Notes | पाश्चात्य काव्यशास्त्र | Paschatya Kavya shastra

 पाश्चात्य काव्यशास्त्र के प्रमुख विचारक और उनकी रचनाएं

क्र.सं. लेखक जीवन काल पुस्तकें
1 प्लेटो 428 ई.पू.- 348 ई.पू. The Republic , The Laws , The Phaedrus , The Phibus
2 अरस्तु 384 ई.पू.- 314 ई.पू. The Poetic , The Politics , The Rhetorics
3 लोंजाइनस ईसा की प्रथम या तृतीय शताब्दी On The Sublime
4 हौरेस 65 ई.पू.- 8 ई.पू. The Art of Poetry
5 क्विटीलियन प्रथम शती का उत्तरार्द्ध Institution Oratoria
6 सर फिलिप सिडनी 1554 ई.- 1586 ई. In Defence of Poetry
7 ड्राइडन 1610 ई.- 1700 ई. Essay on Dramatic Poesy
8 डॉ॰ जॉनसन 1709 ई.- 1784 ई. The Lives of Poets
9 अलेक्जेण्डर पोप 1688 ई.- 1744 ई. Essay on Criticism
10 विलियम वर्ड्सवर्थ 1770 ई.- 1850 ई. The Lyrical Ballads
11 सैमुअल टेलर कॉलरिज 1772 ई.- 1834 ई. Literaria Biographia
12 सैन्त ब्यव 1804 ई.- 1869 ई. The Poetraits
13 मैथ्यू आर्नल्ड 1822 ई.- 1889 ई. Culture of Anarchy , Study of Poetry
14 आई॰ ए॰ रिचर्डस 1893 ई.- 1979 ई. Principles of Literary Criticism , Practical Criticism , Science and Poetry
15 क्रोचे 1866 ई.- 1952 ई. Aesthetics
16 टी॰एस॰ इलियट 1888 ई.- 1969 ई. Tradition and the Individual Talent

Wednesday, August 9, 2023

Hindi Notes | भारतीय आर्य भाषाएं | Bhartiya Arya Bhashayen

 


भारतीय आर्य भाषाओं की उत्पत्ति भारोपीय भाषा परिवार की भारतीय-ईरानी शाखा से हुई है। इसका इतिहास लगभग साढ़े तीन हजार वर्षों का है। इसको भाषागत विशेषताओं तथा विभिन्नताओं के कारण मुख्य रूप से तीन विकास खण्डों में विभाजित किया जाता है-

1. प्राचीन आर्य भाषाएं

2. मध्यकालीन आर्य भाषाएं

3. आधुनिक आर्य भाषाएं

 इसके संपूर्ण विकास क्रम को इस चार्ट के माध्यम से समझा जा सकता है।


चरण भाषा समय
1- प्राचीन आर्य भाषाएं 1- वैदिक संस्कृत 1500 ई.पू.-1000 ई.पू.
1500 ई.पू.-500 ई.पू 2-लौकिक संस्कृत 1000 ई.पू.-500 ई.पू.
2- मध्यकालीन आर्यभाषाएं 1- पालि 500 ई.पू.- 1 ई.
500 ई.पू.-1000 ई. 2- प्राकृत 1 ई.- 500 ई.
3- अपभंश तथा अवहट्ट 500 ई.- 1000 ई.
3- आधुनिक आर्यभाषाएं हिन्दी, बांग्ला 1000 ई. - अब तक
1000 ई. - अब तक उड़िया, मराठी
गुजराती, पंजाबी, सिंधी

यहां हम देखते हैं कि प्राचीन आर्य भाषाओं का समय काल 1500 ई.पू. से लेकर 500 ई.पू. है और इसके अंतर्गत आने वाली भाषाएं हैं- वैदिक संस्कृत (1500 ई.पू.-1000 ई.पू.) और लौकिक संस्कृत (1000 ई.पू.-500 ई.पू )। मध्यकालीन आर्य भाषाओं का समय काल 500 ई.पू. से लेकर 1000 ई. है। इस काल में प्रयोग होने वाली भाषाएं हैं- पालि (500 ई.पू.- 1 ई.), प्राकृत (1 ई.- 500 ई.), अपभ्रंश तथा अवहट्ट (500 ई.-1000 ई.)। 1000 ई. से लेकर अब तक का समय आधुनिक आर्यभाषाओं के अन्तर्गत आता है और इस काल में विकसित हुई भाषाएं हैं- हिन्दी, बांग्ला, उड़िया, मराठी, गुजराती, पंजाबी, सिंधी आदि। 

Friday, August 4, 2023

Hindi Notes | निबंध | दिल्ली दरबार दर्पण | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Dilli Darwar Darpan | Nibandh



महत्वपूर्ण तथ्य

1- इस निबंध का प्रकाशन सन् 1877 में हुआ था। 

2- इसमें अंग्रेजी शासन के प्रति भ्रम पर आधारित महारानी विक्टोरिया के घोषणा पत्र को आधार बनाया गया है। 

3- यह निबंध महारानी के सम्मान में लिखा गया है। 

4- निबंध की मूल विषय वस्तु भेदभाव मिटाकर सभी धर्मों और जातियों को समान अधिकार देना है। 

मुख्य पंक्तियां

1- मैं श्रीमती महारानी की तरफ से यह झंडा खास आपके लिए देता हूं, जो उनके हिन्दुस्तान की राजराजेश्वरी की पदवी लेने का यादगार रहेगा। श्रीमती को भरोसा है कि जब कभी यह झंडा खुलेगा आपको उसे देखते ही केवल इसी बात का ध्यान न होगा कि इंगलिस्तान के राज्य के साथ आपकी खेरखाह राजसी घराने का कैसा दृढ़ संबंध है। 

2- खां साहिब के मिज़ाज में रूखापन बहुत है। एक प्रतिष्ठित बंगाली इनके डेरे पर मुलाकात के लिए गए थे। खां ने पूछा, क्यों आए हो ? बाबू साहिब ने कहा, आप की मुलाकात हो। इस पर खां बोले कि अच्छा आप हमको देख चुके और हम आपको, अब जाइए।

3- बाइसराय ने उत्तर दिया कि हम आप की अंग्रेजी विद्या पर इतना मुबारकबाद नहीं देते जितना अंग्रजों के समान आप का चित्त होने के लिए। 

4- 1 जनवरी को दरबार का महोत्सव हुआ। 

Thursday, August 3, 2023

Hindi Notes | रस | भरत मुनि | काव्यशास्त्र | Ras | Bharat Muni | Kavya shastra

आचार्य भरत मुनि

 

आचार्य भरतमुनि के अनुसार रसों की संख्या

भारतीय काव्यशास्त्र में रसों को लेकर आचार्यों में अलग-अलग मत देखने को मिलते हैं। इसलिए जब भी रसों की संख्या को लेकर बात होती है तब इसमें विभिन्न काव्याचार्यों का ज़िक्र होता है। इन्हीं में से एक नाम ‘भरतमुनि’ का आता है। भरतमुनि ने अपनी पुस्तक नाट्यशास्त्र के छठे अध्याय में रसों की संख्या को लेकर एक श्लोक लिखा है, जो इस प्रकार है-

“शृंगारहास्यकरुणा रौद्रवीरभयानकाः;

वीभत्साद्भुतसंज्ञो चेत्यष्टौ नाटये रसाः स्मृताः।”

इसके अनुसार इन्होंने रसों की संख्या आठ मानी है। जो निम्नलिखित हैं-

1. श्रंगार 

2. हास्य

3. करूण

4. रौद्र

5. वीर

6. भयानक

7. बीभत्स

8. अद्भुत


* नाट्यशास्त्र में कुल 36 अध्याय हैं। जिनमें से छठे और सातवें अध्याय में रस का विवेचन किया गया है। 


निबंध | कवि और कविता | महावीर प्रसाद द्विवेदी | Nibandh | Kavi aur Kavita | Mahavir Prasad Dwivedi

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी निबंध - कवि और कविता यह बात सिद्ध समझी गई है कि कविता अभ्यास से नहीं आती। जिसमें कविता करने का स्वाभाविक माद्द...