एक बार एक महिला थी जो बहुत ही हंसमुख थी, हालांकि ऐसा बना रहने के लिए उसके पास बहुत ही कम अवसर होते थे। क्योंकि वह बूढ़ी, गरीब और अकेली थी। वह एक छोटी सी झोपड़ी में रहती थी और अपने पड़ोसियों का छोटा-मोटा काम करके बहुत कम में गुज़ारा करती थी, अपनी सेवाओं के लिए उसे इनाम स्वरूप यहां-वहां, कुछ न कुछ खाने-पीने को मिल जाता था। इसी तरह उसका जीवन व्यतीत होता था, और वह सदैव फुर्तीली और खुशमिज़ाज नज़र आती थी, जैसे उसे इस दुनिया में किसी चीज़ की ज़रूरत न हो।
अब एक गर्मी की शाम को, वह हमेशा की तरह मुस्कुराती हुई मुख्य मार्ग से होते हुए अपनी झोपड़ी की ओर जा रही थी, तभी उसने देखा कि एक बड़ा सा काला बर्तन एक गड्डे में पड़ा है!
“हे भगवान!” वह चिल्लाई, “यदि मेरे पास इसमें रखने के लिए कुछ होता तो यह मेरे लिए बड़े काम की चीज़ होती! लेकिन मेरे पास कुछ नहीं है ! अब इसे गड्डे में कौन छोड़ सकता है ?”
और उसने इस उम्मीद से अपने इधर-उधर देखा कि इसका मालिक बहुत दूर नहीं होगा ; लेकिन उसे कोई नहीं दिखा।
“शायद इसमें कोई छेंद हो,” उसने कहा, “और इसीलिए इसे फेंक दिया गया हो, लेकिन यह खिड़की पर फूल लगाने के लिए अच्छा रहेगा; इसलिए मैं इसे अपने साथ घर ले चलती हूं।”
और इसके बाद उसने ढक्कन उठाकर जैसे ही अन्दर देखा, वह आश्चर्यचकित होकर चिल्लाई “मुझ पर दया करो!” “यदि यह सोने के सिक्कों से भरा नहीं है, तो यह किस्मत है!”
और ऐसा ही था, यह सोने के सिक्कों से भरा हुआ था। खैर, पहले तो वह साधारणतः स्थिर होकर खड़ी रही और सोंचती रही कि वह अपने सिर के बल खड़ी है या ऐड़ी के बल। फिर उसने कहना शुरू किया-
“अद्भुत् ! मैं अमीर महसूस कर रही हूं। मैं बहुत अमीर महसूस कर रही हूं!”
इसे कई बार कहने के बाद, उसने सोंचना शुरू किया कि वह अब ख़जाने को घर कैसे ले जाएगी ? यह उसके ले जाने के लिए बहुत भारी था, और इसके सिवा उसे कोई उपाए न सूझा कि वह अपनी शॉल के छोर को उससे बांधकर उसे अपने पीछे गो-कार्ट की तरह खींचती हुई ले जाए।
“जल्द ही अंधेरा हो जाएगा,“उसने खुद से कहा और चलने लगी। “यह बहुत अच्छा रहेगा! पड़ोसी नहीं देख पाऐंगे कि मैं घर क्या लेकर आ रही हूं, और मेरे पास यह सोंचने के लिए पूरी रात होगी कि मैं क्या करूंगी। शायद मैं एक शानदार घर खरीदूं और बस आग के सामने एक कप चाय के साथ बैठी रहूं और रानी की तरह कोई भी काम न करूं। या शायद मैं इसे बगीचे में नीचे गाड़ दूं और चिमनी के ऊपर पुरानी चीनी केतली में थोड़ा सा रख दूं। या शायद- अच्छा! अच्छा! मैं इतना शानदार महसूस करती हूं, जिसे खुद मैं भी नहीं जानती।
इस समय तक वह इतना भारी वजन ढोते-ढोते थक चुकी थी, अतः वह थोड़ी देर आराम करने के लिए रूकी, और अपने खज़ाने को देखने के लिए मुड़ी।
और देखो! यह तो सोने का बर्तन नहीं था! इसमें चांदी के टुकड़ों के सिवा कुछ भी नहीं था।
उसने उसकी ओर देखा और अपनी आंखों को मला, और फिर से उसे देखा।
“अच्छा! मैंने देखा नहीं!” उसने अन्त में कहा। “और मैं सोंच रही थी कि यह बर्तन सोने से भरा है! ज़रूर मैं कोई सपना देख रही थी। लेकिन यह किस्मत है ! चांदी बहुत कम परेशान करने वाली चीज़ है- इसकी देख-रेख करना आसान है, और यह आसानी से चोरी भी नहीं होती। उन सोने के सिक्कों से तो मेरी मौत हो जाती, और चांदी के इस बड़े ढेर के साथ-”
अतः वह फिर से योजनाएं बनाने लगी कि वह क्या करेगी, और खुद को तब तक बहुत अमीर महसूस करती रही, जब तक कि वह फिर से थोड़ा थक नहीं गई। वह आराम करने के लिए रूकी और यह देखने के लिए चारों ओर देखा कि क्या उसका ख़ज़ाना सुरक्षित है; और उसे लोहे के बड़े ढेर के अलावा कुछ भी नहीं दिखा।
“अच्छा! मैंने देखा नहीं!” उसने फिर कहा। “और मैं इसे गलती से चांदी समझ रही थी। मैं ज़रूर सपना देख रही थी। लेकिन यह किस्मत है! यह वास्तव में सुविधाजनक है। मैं इन पुराने लोहे के बदले पैसों के सिक्के पा सकती हूं, और मेरे लिए पैसों के सिक्के तुम्हारे सोने और चांदी से कहीं अधिक उपयोगी हैं। क्यों! मुझे लूटे जाने के डर से कभी भी नींद नहीं आती। लेकिन पैसों के सिक्के काम में आने वाली चीज़ हैं, और मैं उस लोहे को बहुत अधिक कीमत पर बेंच दूंगी और बहुत अमीर बन जाऊंगी-बहुत अमीर।”
वह इस बारे में सोंचते हुए आगे बढ़ती रही, कि वह अपने पैसों के सिक्कों को कैसे खर्च करेगी, तभी एक बार फिर वह आराम करने के लिए रूकी और अपने ख़ज़ाने को सुरक्षित देखने के लिए इधर-उधर देखा, और इस बार उसे एक बड़े पत्थर के सिवा कुछ भी नहीं दिखा।
“अच्छा! मैंने देखा नहीं!” वह मुस्कुराती हुई चिल्लाई। “और गलती से मैं इसे लोहा समझ बैठी। मैं ज़रूर कोई सपना देख रही थी। लेकिन यह वास्तव में किस्मत है। मुझे दरवाजा खोले रखने के लिए एक पत्थर की सख़्त ज़रूरत थी। अरे वाह! यह बदलाव तो अच्छा है। यह वस्तु तो अच्छे भाग्य के लिए बहुत ही शुभ है।”
तो, यह देखने की जल्दी में कि पत्थर दरवाजे को कैसे खुला रखेगा, वह पहाड़ी से नीचे उतरकर चलने लगी और तब तक चलती रही, जब तक वह अपनी झोपड़ी में नहीं आ गई। उसने दरवाजे की कुंडी खोली और फिर अपने पीछे रास्ते पर पड़े पत्थर से अपनी शॉल खोलने के लिए मुड़ी। हां! यह निश्चित रूप से एक पत्थर था। यह देखने के लिए वहां पर्याप्त रोशनी थी कि पत्थर वहां पड़ा हुआ है, बिल्कुल शांत, जैसा कि एक पत्थर होना चाहिए।
अतः वह शॉल का छोर खोलने के लिए उस पर झुकी, तभी- “यह क्या!” अचानक उसने छलांग लगाई, चीखी, और एक पल में वह पत्थर घास के ढेर जितना बड़ा हो गया। फिर उसने चार बड़े और लम्बे पैर नीचे किए, और दो लंबे कान बाहर निकाले, एक लम्बी पूंछ का आकार बढ़ाया , और शैतान, उपद्रवी लड़के की तरह, लात मारते, चीखते, बड़बड़ाते और हंसते हुए भाग गया !
बूढ़ी औरत उसे तब तक देखती रही जब तक वह नज़रों से ओझल नहीं हो गया, फिर वह भी ज़ोर से हंस पड़ी।
“अच्छा!” उसने हंसते हुए कहा, “मैं भाग्यशाली हूं। यहां का सबसे भाग्यशाली शरीर! कल्पना कीजिए कि मैं दलदली दानव को खुद देख रही हूं ; और मैं उसके साथ खुद को भी आजाद महसूस कर रही हूं! मेरी खुशनसीबी! कि मैं भी उस रोमांच और भव्यता को महसूस कर पाई।
फिर वह अपनी झोपड़ी में चली गई और अपने अच्छे भाग्य पर हंसते हुए शाम बिताई।