लघुकथा – माचिस वाली एक छोटी लड़की

कड़ाके की ठंड थी, बर्फ गिर रही थी, और लगभग अंधेरा हो गया था। संध्या का समय था, इस साल की आखिरी संध्या। इस ठंड और अंधेरे में एक गरीब छोटी लड़की नंगे पैर और नंगे सिर सड़क पर चल रही थी। यह सच है कि जब वह घर से निकली थी, तब उसने चप्पलें पहनी हुई थीं ; लेकिन उनका महत्व क्या था ? वे चप्पलें बहुत बड़ी थीं, जिन्हें अब तक उसकी मां पहना करती थी; वे बहुत ही बड़ी थीं ; और उस गरीब छोटी बच्ची ने उन्हें उस समय खो दिया, जब वह दो बड़ी तेजी से आ रही गाड़ियों की वजह से जल्दबाजी में सड़क पार कर रही थी।

उनमें से एक चप्पल उसे कहीं नहीं मिली; दूसरी एक नटखट लड़के ने उठा ली, और उसे लेकर भाग गया ; उसने सोंचा कि वह इसका प्रयोग उस समय एक पालने के रूप में कर सकेगा, जब उसके या किसी और के बच्चे होंगे। इसीलिए वह छोटी लड़की नंगे पैर ही चल रही थी, जो ठंड की वजह से काफी लाल और नीले हो गए थे। एक पुराने से एप्रेन में उसने माचिस के कई पैकेट रखे हुए थे और उनमें से एक पैकेट उसके हाथ में था। पूरे दिन किसी ने उससे एक भी माचिस नहीं खरीदी , और न ही किसी ने एक भी पैसा दिया था।

ठंड और भूख से कांपती हुई वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी-कष्टों की जीती जागती तस्वीर, बेचारी छोटी बच्ची!

बर्फ के टुकड़े उसके लम्बे और स्वच्छ बालों पर गिर रहे थे, जो सुंदर घुंघराले बालों पर गर्दन तक लटक रहे थे; लेकिन निस्संदेह, उसने एक बार भी इसके बारे में नहीं सोंचा। सभी खिड़कियों में से रोशनी चमक रही थी, और भुने हुए हंस की बेहतरीन खुशबू आ रही थी। हां, उसने इसके बारे में सोंचा था।

दो घरों से बने एक कोने में, जिनमें से एक घर दूसरे से थोड़ा अधिक बढ़ा हुआ था, वह सहमी हुई नीचे बैठ गई और अपने छोटे पैरों को अपनी ओर खींच लिया। उसे बहुत ठंड लग रही थी, और घर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी, क्योंकि उसकी एक भी माचिस नहीं बिकी थी और न ही एक भी पैसा कमा सकी थी। निश्चित ही उसके पिता उसे पीटेंगे,और घर पर भी तो ठंड थी। वहां छत के सिवा कुछ भी नहीं था, यद्यपि बड़ी-बड़ी दरारें पुआल और चिथड़ों से भर दी गई थीं, फिर भी वहां हवा सीटी बजाती हुई प्रहार करती थी।

उसके छोटे-छोटे हाथ ठंड से लगभग सुन्न हो गए थे। ओह! एक छोटी सी माचिस उसे सुकून दे सकती थी, यदि वह माचिस के बक्से में से एक माचिस निकालकर दीवार से रगड़ती और उससे अपनी उंगलियों को गर्म करती। उसने एक माचिस निकाली। “चिट!” यह कैसी धधकी! यह कैसी जली! यह एक गर्म और चमकदार लौ थी, बिल्कुल मोमबत्ती की तरह, जैसे ही उसने अपना हाथ उसके ऊपर रखा, उसमें से आश्चर्यजनक प्रकाश निकला। छोटी बच्ची को यह वास्तव में ऐसा लग रहा था, जैसे वह एक बड़े से लोहे के स्टोव के सामने बैठी है, जिसकी पीतल की जली हुई तली है और ऊपर पीतल की घुंडियां हैं। आग बड़े ही शानदार तरीके से जल रही थी, और अपनी गर्माहट से बहुत सुकून दे रही थी। छोटी बच्ची ने अपने पैर गर्म करने के लिए पहले ही फैला लिए थे; लेकिन छोटी लौ बुझ गई, स्टोव गायब हो गया, उसके हाथ में सिर्फ जली हुई माचिस रह गई।

उसने दीवार की सहायता से दूसरी माचिस जलाई; यह बहुत तेजी से जली, और दीवार पर जहां प्रकाश पड़ा, वह स्थान पतले पर्दे की तरह पारदर्शी हो गया। इसलिए वह कमरे के अन्दर देखने में सक्षम हो गई। मेज पर एक बर्फ जैसा कपड़ा बिछा हुआ था, जिसपर चमकते हुए चीनी बर्तन रखे थे, और भुना हुआ हंस, सेब और आलू बुखारे से भरा हुआ शानदार तरीके से भाप में पक रहा था, और देखने लायक सबसे कमाल की चीज यह थी कि अचानक हंस बर्तन से नीचे कूद पड़ा और अपनी छाती में घुसे हुए चाकू और कांटों के साथ ही फर्श पर रेंगने लगा। इससे पहले वह उस गरीब छोटी बच्ची के पास आ पाता, माचिस बुझ गई और पीछे मोटी, ठंडी, नम दीवार के आलावा कुछ भी नहीं बचा। उसने दूसरी माचिस जलाई। अब वह एक शानदार क्रिसमस ट्री के नीचे बैठी थी। यह उस ट्री से बहुत बड़ा और बहुत अधिक सजा हुआ था, जो उसने एक अमीर व्यापारी के घर कांच के दरवाजे से देखा था।

हरी-हरी शाखाओं पर हजारों लाइटें जल रही थीं, और उल्लासपूर्ण रंगीन तस्वीरें, जैसी उसने एक दुकान की खिड़की में देखी थी, नीचे उसकी ओर देख रही थीं। छोटी लड़की ने अपने दोनों हाथ उसकी ओर बढ़ाए तभी माचिस बुझ गई। लेकिन क्रिसमस ट्री की रोशनी और अधिक जगमगाने लगी। अब उसने उन्हें सितारों के रूप में देखा, उनमें से एक नीचे गिर गया और आग का एक लंबा निशान बन गया।

“अभी-अभी कोई मरा है।” छोटी लड़की ने कहा; क्योंकि उसकी बूढ़ी दादी, एक मात्र व्यक्ति जो उससे प्यार करती थीं, और जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, उससे कहा करती थीं कि जब कोई तारा टूटता है तब एक आत्मा भगवान के पास जाती है।

उसने दीवार से फिर एक माचिस जलाई, फिर से प्रकाश फैल गया। इस रोशनी में उसे बहुत ही उज्जवल और दीप्तिमान, बहुत ही सौम्य और प्यार की ढेर सारी अभिव्यक्ति के साथ बूढ़ी दादी खड़ी दिखाई दीं।

“दादी!” छोटी बच्ची चिल्लाई। “ओह, मुझे भी अपने साथ ले चलो। माचिस बुझते ही तुम भी मुझसे दूर चली जाओगी, जैसे गर्म स्टोव, स्वादिष्ट भुना हुआ हंस और शानदार क्रिसमस ट्री गायब हो गए।” और फिर उसने माचिस का पूरा बंडल दीवार की सहायता से जला दिया, क्योंकि वह दादी को अपने पास रोकने के लिए पूरी तरह आश्वस्त होना चाहती थी। माचिस से इतनी तेज रोशनी निकल रही थी कि दोपहर के समय से भी अधिक प्रकाश फैला हुआ था। दादी को उसने इससे पहले कभी भी इतना सुन्दर और इतना लम्बा नहीं देखा था। उन्होंने बच्ची को अपनी गोद में बैठा लिया, और वे दोनों चमचमाते हुए और हंसी-खुशी बहुत ऊपर उड़ गए, बहुत-बहुत ऊपर, जहां न ठंड थी, न भूख थी और न ही चिंता, वे अब भगवान के साथ थे।

लेकिन गुलाबी गाल और मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ सुबह की ठंडी घड़ी में वह गरीब बच्ची दीवार से टिकी हुई एक कोने में बैठी थी, जो पुराने साल की आखिरी शाम को जमकर मर गई थी। अकड़ी हुई वह बच्ची वहीं अपनी माचिसों के पास बैठी थी, जिनमें से एक बण्डल जल चुका था। “वह खुद को गर्म करना चाहती थी।” लोगों ने कहा। किसी को जरा भी संदेह नहीं हुआ कि उसने कितनी सुन्दर चीज़ें देखी थीं। किसी ने उस वैभवशाली क्षण की कल्पना भी नहीं की थी, जिसमें वह अपनी दादी के साथ नए साल की खुशियों में शामिल हुई थी।

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