सुभद्रा कुमारी चौहान (बाल काव्य)

 रामायण की कथा

आज नहीं रुक सकता अम्मां
जाऊंगा मैं बाहर
रामायण की कथा हो रही
होगी सरला के घर ।

मेरे ही आगे उसके घर
आया था हलवाई
पूजा में प्रसाद रखने को
वह दे गया मिठाई ।

पूजा हो जाने पर बंटता
है प्रसाद मनमाना
चाहो तो प्रसाद लेने को
मां तुम भी आ जाना ।

क्या कहती हो अभी धूप है
अभी न बाहर जाऊं

यह क्या मां, जब अभी
जा रहे थे काका जी बाहर
तब भी तो थी धूप गए थे
वे भी तो नंगे सर ।

उन्हें नहीं रोका था तुमने
मुझे रोकती जातीं
यही तुम्हारी बात समझ में
कभी न मेरे आती ।

वे किसलिए कचहरी में मां
रोज धूप में जाते
कुछ भी उन्हें न कहतीं वे तो
बहुत शाम को आते ।

मैं जब कभी काम पड़ने पर
भी हूँ बाहर जाता
नहीं शाम भी होने पाती
जल्द लौट कर आता ।

तब भी मुझको रोका करतीं
मां तुम कितनी भोली
नहीं खेलने जाता हूँ मैं
गुल्ली डंडा गोली ।

काका जी की तरह न अम्मां
देर लगाऊंगा मैं
कथा हुई फिर क्या, प्रसाद
लेकर आ जाऊँगा मैं ।

तो घंटा बज उठा, हो गई
अम्मां मुझको देरी
वह देखो, आ रही बुलाने
मुझको सरला मेरी ।

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