शेखचिल्ली अपने घर के बरामदे में बैठे-बैठे खुली आँखों से सपने देख रहे थे। उनके सपनों में एक विशालकाय पतंग उड़ी जा रही और शेखचिल्ली उसके ऊपर सवार थे। कितना आनंद आ रहा था आसमान में उड़ते हुए नीचे देखने में। हर चीज़ छोटी नज़र आ रही थी। तभी अम्मी की तेज़ आवाज ने उन्हें ख्यालों की दुनिया से बाहर निकाल दिया- “शेखचिल्ली ! शेखचिल्ली ! कहाँ हो तुम ?
‘आया अम्मी’, ख्यालों की दुनिया से निकल कर शेखचिल्ली घर के आँगन में पहुँचे।
“मैं सलमा आपा के घर जा रही हूँ।उनकी बेटी की शादी की तैयारी कराने। शाम में आऊँगी। आऊँगी तो तुम्हारे लिए मिठाइयाँ भी लेकर आऊँगी। तब तक तुम दरांती लेकर जंगल से पड़ोसी की गाय के लिए घास काट लाना। कुछ पैसे मिल जायेंगे।”
“जी अम्मी” शेखचिल्ली ने कहा और दरांती उठाकर जंगल जाने के लिए तैयार हो गए।
“सावधानी से जाना और दिन में सपने मत देखने लग जाना। दरांती को होशियारी से पकड़ना, कहीं हाथ न कट जाए।” अम्मी ने समझाते हुए कहा।
“आप बिलकुल चिंता ना करें। मैं पूरी सावधानी रखूंगा।” शेख ने अम्मी को दिलासा दिया।
शेखचिल्ली हाथ में दरांती लिए जंगल की ओर निकल पड़े। चलते-चलते उन्हें उन मिठाइयों का ध्यान आया, जो अम्मी ने लाने को कहा था।
‘कौन सी मिठाई लाएँगी अम्मी? शायद गुलाब जामुन। स्वादिष्ट, भूरे, चाशनी में डूबे गुलाब जामुन।’ उनके मुंह में पानी आने लगा। अचानक राह चलते ठोकर लगी और शेखचिल्ली वर्तमान में वापस आ गए। ‘ओह्ह , क्या कर रहा हूँ मैं। अम्मी ने मना किया था, रास्ते में सपने देखने को।’ उन्होंने अपने आप को समझाया।
खैर, जंगल पहुँच कर दोपहर तक शेखचिल्ली ने काफी घास काट ली। उन्होंने घास का एक बड़ा सा गट्ठर बनाया और उसे सर पर रख कर वापस आ गए। गट्ठर को उन्होंने पड़ोसी के घर देकर पैसे ले लिए, तब उन्हें याद आया कि दरांती तो वो जंगल में ही छोड़ आये। दरांती वापस लानी ही थी, नहीं तो अम्मी के गुस्से का सामना करना पड़ता। शेखचिल्ली दौड़ते हुए वापस जंगल पहुँचे। दरांती वहीँ पड़ी हुई थी, जहाँ उन्होंने छोड़ी थी। शेखचिल्ली ने जैसे ही दरांती को छुआ, उन्हें झटका सा लगा और दरांती हाथ से छूट गयी। धूप में पड़े पड़े दरांती का लोहा खूब गर्म हो गया था। वे दरांती को उलट-पलट कर देख रहे थे और समझने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर दरांती इतनी गर्म कैसे हुई। वो अभी दरांती का निरीक्षण ही कर रहे थे कि उनके पड़ोस में रहने वाला जुम्मन उधर से गुजरा।
शेखचिल्ली को यूं अपनी दरांती को घूरते देखकर जुम्मन ने पूछा-“क्या बात है? तुम दरांती को ऐसे क्यों घूर रही हो?”
“मेरी दरांती को कुछ हो गया है। ये काफी गर्म हो गयी है।” शेखचिल्ली ने चिंतित स्वर में कहा।
जुम्मन को शेख की बात पर हंसी आ गयी। मन-ही-मन हँसते हुए, ऊपर से गंभीर स्वर में उसने कहा-“तुम्हारी दरांती को बुखार हो गया है।”
“ओह्ह! फिर तो इसे हकीम के पास ले जाना पड़ेगा।” शेखचिल्ली की चिंता बढ़ गई।
“अरे नहीं, मुझे पता है बुखार का इलाज। मेरी दादी को अक्सर बुखार होता है। हकीम कैसे उनका इलाज करता है, मैंने देखा है। मेरे साथ आओ, मैं करता हूँ इसका इलाज।” लल्लन ने कहा। उसके चालाक दिमाग में दरांती हथियाने की एक योजना बन चुकी थी।
आगे-आगे दरांती उठाये जुम्मन चला और उसके पीछे शेखचिल्ली चले। चलते-चलते जुम्मन एक कुएँ के पास रुका और दरांती में एक रस्सी बाँधकर उसे कुएँ के पानी में लटका दिया।
“इसे शाम तक ऐसे ही लटके रहने दो। शाम तक इसका बुखार उतर जाएगा, तब आकर इसे ले जाना।” जुम्मन ने सोचा कि शेखचिल्ली के जाने के थोड़ी देर बाद वह आकर दरांती निकाल ले जाएगा और बाजार में बेच देगा।
शेख ने वैसा ही किया और घर जाकर सो गये। शाम में जब नींद खुली तो उन्होंने सोचा दरांती का हालचाल लिया जाय। घर से निकलकर जैसे ही वो कुएँ की तरफ़ बढ़े, जुम्मन के घर से किसी के कराहने की आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने अंदर जाकर देखा, जुम्मन की दादी बेसुध पड़ी कराह रही थी। शेखचिल्ली ने उनका हाथ छूकर देखा, हाथ काफी गर्म था। उन्होंने ने सोचा, ‘जुम्मन की दादी को बुखार है। जुम्मन ने दिन में मेरी मदद की। मुझे भी उसकी मदद करनी चाहिए।’
शेखचिल्ली ने आसपास देखा। निकट ही रस्सी पड़ी थी। उन्होंने जुम्मन की दादी को रस्सी से बाँधा और कंधे पर लादकर कुएँ की ओर ले जाने लगे। पड़ोसियों ने देखा तो उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन शेखचिल्ली ने किसी की नहीं सुनी और दादी को लेकर कुएँ तक जा पहुँचे। कुएँ पर पहुँच कर उन्होंने अपनी दरांती कुएँ से बाहर निकाली। दादी के लिए दवा लेने जाने के कारण जुम्मन को दरांती निकालने का वक्त नहीं मिला था। शेखचिल्ली ने दरांती को निकाल कर एक ओर रखा और जुम्मन की दादी को कुएँ में लटकाने की तैयारी करने लगे।
दूसरी ओर, जब जुम्मन और उसके अब्बा हकीम से दादी के लिए दवा लेकर लौटे तो पड़ोसियों ने बताया कि शेखचिल्ली रस्सियों में बांधकर दादी को कुएँ की ओर ले गया। दोनों भागते हुए कुएँ तक पहुँचे तो देखा कि शेखचिल्ली दादी को कुएँ में लटकाने ही वाले थे।
“अरे बेवकूफ, ये क्या कर रहा है?” जुम्मन के अब्बा ने चिल्लाकर कहा।
“ओह्ह, आ गए आप। मैं दादी के बुखार का इलाज कर रहा था।” शेखचिल्ली ने उत्तर दिया।
“ऐसे कहीं बुखार का इलाज होता है? किस पागल ने बताया तुझे?” जुम्मन के अब्बा ने अपनी माँ की रस्सियाँ खोलते हुए पूछा।
“मुझे तो जुम्मन ने ही बताया।” शेखचिल्ली ने जुम्मन की ओर इशारा करते हुए कहा।
जुम्मन के अब्बा ने घूरकर जुम्मन की ओर देखा। जुम्मन सर झुकाए खड़ा था। उन्होंने डंडा उठाया और जुम्मन की ओर लपके। अब जुम्मन आगे-आगे और उसके अब्बा पीछे-पीछे।
हैरान शेखचिल्ली अपनी दरांती के साथ घर वापस लौट आये, जहाँ अम्मी गुलाब जामुन के साथ उनका इंतज़ार कर रही थीं।